राष्ट्रपति, राज्यपाल और सुप्रीम कोर्ट के बीच संवैधानिक बहस, संविधान, अनुच्छेद 200, 201 और 143(1) की व्याख्या
👉 यह मामला सिर्फ कानून की किताबों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समझने और तय करने की कोशिश है कि हमारे संविधान की असली भावना क्या है — और उसे ठीक से जिंदा कैसे रखा जाए। यही वजह है कि यह मुद्दा बेहद अहम और दिलचस्प बन गया है।
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हालिया घटनाक्रम: सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति के बीच संवैधानिक बहस
राज्यपाल द्वारा राज्य सरकार के विधेयकों को रोकना और उन्हें राष्ट्रपति के पास भेजना हाल ही में एक बड़ा संवैधानिक मुद्दा बन गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए स्पष्ट किया कि राज्यपाल और राष्ट्रपति अनिश्चितकाल तक विधेयकों को लंबित नहीं रख सकते। इस ब्लॉग में हम इस संवैधानिक विवाद, सुप्रीम कोर्ट के फैसले, राष्ट्रपति द्वारा उठाए गए प्रश्नों और इससे जुड़े प्रावधानों को आसान भाषा में समझाएंगे।
🏛️ सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (8 अप्रैल 2025)
सुप्रीम कोर्ट ने “State of Tamil Nadu v. Governor of Tamil Nadu” मामले में निर्णय देते हुए कहा कि राज्यपालों को विधेयकों पर निर्णय लेने में अनिश्चितकालीन देरी नहीं करनी चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि राज्यपाल विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजते हैं, तो राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर निर्णय लेना चाहिए।
📜 क्या आप जानते राज्यपाल और राष्ट्रपति की भूमिका : विधेयक पर निर्णय की प्रक्रिया
🔸 1. संवैधानिक प्रावधान: अनुच्छेद 200 (Article 200)
राज्यपाल के पास किसी राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयक पर निम्नलिखित विकल्प होते हैं:
➤ (a) स्वीकृति देना
राज्यपाल विधेयक को स्वीकृति देकर कानून बना सकता है।
➤ (b) पुनर्विचार के लिए लौटाना
अगर विधेयक साधारण है (मनी बिल नहीं), तो राज्यपाल उसे राज्य विधानसभा को पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है।
यदि विधानसभा दोबारा वही विधेयक पारित कर देती है, तो राज्यपाल को उसे मंज़ूरी देनी होती है।
➤ (c) राष्ट्रपति के पास भेजना (Reserve for President)
यदि विधेयक संविधान के खिलाफ है, या किसी केंद्रीय विषय से जुड़ा है, या फिर राष्ट्रपति की सहमति आवश्यक हो — तो राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रख सकता है।
🔸 2. संवैधानिक प्रावधान: अनुच्छेद 201 (Article 201)
यदि राज्यपाल विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजता है, तो:
- राष्ट्रपति विधेयक को मंज़ूरी दे सकता है, या
- उसे वापस विधानसभा को पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है, या
- उसे अस्वीकृत कर सकता है।
📌 लेकिन संविधान कोई समय-सीमा तय नहीं करता, कि राष्ट्रपति कितने समय में निर्णय ले।
📖 व्याख्या और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
✅ सुप्रीम कोर्ट का ताज़ा दृष्टिकोण (2024-25 में)
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल अनिश्चितकाल तक विधेयक को लंबित नहीं रख सकते।
- यदि विधेयक राष्ट्रपति को भेजा गया है, तो राष्ट्रपति को उचित समय के भीतर निर्णय लेना चाहिए।
- कोर्ट ने कहा कि यह प्रक्रिया यदि बहुत लंबी खींची जाती है तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करती है।
🔍 महत्वपूर्ण मामला: State of Tamil Nadu v. Governor of Tamil Nadu (2024)
- राज्यपाल द्वारा विधेयकों को रोके जाने और राष्ट्रपति को भेजने में देरी पर कोर्ट ने कहा —
“यह ‘पॉकेट वीटो’ (Pocket Veto) नहीं बनना चाहिए, जिससे विधायिका की शक्ति निष्क्रिय हो जाए।”
राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट से पूछे गए 14 प्रश्न
🔸 अनुच्छेद 143(1) : राष्ट्रपति की सलाह मांगने की शक्ति
अनुच्छेद 143(1) के तहत, राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वे किसी भी ऐसे प्रश्न पर, जो कानून या सार्वजनिक महत्व का हो, सुप्रीम कोर्ट से सलाह मांग सकते हैं। यह एक सलाहात्मक प्रक्रिया है, और सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई राय बाध्यकारी नहीं होती, लेकिन इसका उच्च महत्व होता है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय पर सवाल उठाते हुए अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से 14 प्रश्नों पर सलाह मांगी है। इनमें मुख्य प्रश्न यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय-सीमा निर्धारित कर सकता है, जबकि संविधान में ऐसी कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं है।
राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट से पूछे गए 14 प्रश्नों का सारांश निम्नलिखित है:
- राज्यपाल के विकल्प: जब कोई विधेयक अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, तो उनके पास कौन-कौन से संवैधानिक विकल्प होते हैं?
- मंत्रिपरिषद की सलाह: क्या राज्यपाल को विधेयक पर निर्णय लेते समय मंत्रिपरिषद की सलाह का पालन करना अनिवार्य है?
- न्यायिक समीक्षा: क्या राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत लिए गए निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं?
- अनुच्छेद 361 की सीमा: क्या अनुच्छेद 361 राज्यपाल के कार्यों को न्यायिक समीक्षा से पूर्णतः प्रतिरक्षित करता है?
- समय–सीमा निर्धारण: क्या न्यायालय अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के निर्णय लेने की प्रक्रिया के लिए समय-सीमा निर्धारित कर सकता है, जबकि संविधान में ऐसी कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं है?
- ‘डीन असेंट‘ की वैधता: क्या न्यायालय द्वारा निर्धारित समय-सीमा के भीतर निर्णय न लेने पर विधेयक को स्वीकृत मान लेना (‘डीन असेंट’) संवैधानिक है?
- अनुच्छेद 142 का प्रयोग: क्या अनुच्छेद 142 के तहत न्यायालय राष्ट्रपति और राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों को सीमित कर सकता है?
- विधेयक की वैधता: क्या राज्यपाल की स्वीकृति के बिना कोई राज्य विधेयक वैध माना जा सकता है?
- राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियाँ: क्या राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियाँ न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं?
- संविधान की व्याख्या: क्या न्यायालय संविधान की व्याख्या करते समय विधायी प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर सकता है?
- राज्यपाल की भूमिका: क्या राज्यपाल केवल एक औपचारिक प्रमुख हैं, या उनकी भूमिका में कुछ स्वतंत्रता है?
- संविधान में समय–सीमा का अभाव: जब संविधान में स्पष्ट समय-सीमा नहीं है, तो क्या न्यायालय उसे निर्धारित कर सकता है?
- कार्यपालिका और न्यायपालिका का संतुलन: क्या न्यायपालिका कार्यपालिका की शक्तियों को सीमित कर सकती है?
- संवैधानिक मर्यादाएँ: क्या न्यायालय द्वारा निर्धारित समय-सीमा संविधान की मर्यादाओं के अनुरूप है?
🔹 क्यों राष्ट्रपति ने इस पर सवाल उठाया
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में राज्यपालों और राष्ट्रपति को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय-सीमा निर्धारित की थी। राष्ट्रपति ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि संविधान में ऐसी कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं है, और न्यायालय द्वारा समय-सीमा निर्धारित करना कार्यपालिका की शक्तियों में हस्तक्षेप हो सकता है।
📌 निष्कर्ष:
राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से सलाह लेना भारतीय संविधान की एक दुर्लभ लेकिन बेहद महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो हमारे लोकतंत्र की मजबूती को दर्शाती है। यह मामला राज्यपालों और राष्ट्रपति की विधायी प्रक्रिया में भूमिका, उनकी संवैधानिक सीमाओं और न्यायपालिका की निगरानी शक्ति को लेकर गंभीर सवाल उठाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों द्वारा विधेयकों को अनिश्चितकाल तक लंबित रखने को लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ माना है, वहीं राष्ट्रपति ने यह चिंता जताई है कि क्या न्यायपालिका कार्यपालिका के संवैधानिक अधिकारों में अति-हस्तक्षेप कर रही है।
यह विवाद केवल तकनीकी या कानूनी नहीं है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र के तीनों स्तंभों — विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका — के बीच संतुलन की परीक्षा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए जाने वाले उत्तर भविष्य में विधायी प्रक्रिया, संघीय ढांचे और संवैधानिक मर्यादाओं को स्पष्ट दिशा देंगे।
FAQs
राज्यपाल विधेयक को क्यों रोक सकता है?
राज्यपाल अनुच्छेद 200 के तहत विधेयक को स्वीकृति, पुनर्विचार या राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं।
क्या सुप्रीम कोर्ट राज्यपाल के निर्णय पर समय-सीमा तय कर सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल अनिश्चितकाल तक विधेयक लंबित नहीं रख सकते, पर इस पर राष्ट्रपति ने सलाह मांगी है।
राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से कौन-कौन से सवाल पूछे हैं?
राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 143(1) के तहत 14 संवैधानिक प्रश्न पूछे हैं, जिनमें विधेयक पर समय-सीमा का मुद्दा शामिल है।
अनुच्छेद 143(1) क्या है?
यह राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट से संवैधानिक या महत्वपूर्ण सार्वजनिक सवालों पर सलाह लेने का अधिकार देता है।
क्या सुप्रीम कोर्ट की सलाह बाध्यकारी होती है?
नहीं, सुप्रीम कोर्ट की राय बाध्यकारी नहीं होती, लेकिन इसका संवैधानिक महत्व बहुत होता है।